कहने को तो गौ माता हूं,
पर माँ का दर्जा तुमने कब दिया।
तुम ने हमेशा सौदा किया मेरा,
कभी चंद पैसों के लिए बेच दिया।
कभी भक्षक बनकर मेरे ही तन,
का मांस बनाकर खा लिया।।
कहने को तो गौ माता हूं,
जब दूध दही देती हूं तो,
मतलब के लिए खूंटे से
बांध लिया।
जब पूरा हो गया स्वार्थ तो,
कहीं दूर ले जाकर मुझे छोड़ दिया।।
कहने को तो गौ माता हूं,
पर मुझे से ही मां का सुख,
छीन लिया।
मेरे ही बछड़े के हिस्से का दूध,
पीकर उसे भी मार दिया।।
स्वार्थ में अंधा हो गया मानव,
चंद पैसों में तू हैवान बन गया,
कहने को तो गौ माता हूं,
पर अपने ही जुल्मों का शिकार बनाया तुने।।
फिर मत कर ढोंग तू यू,
माता-माता पुकारने का।
मत कर दिखावा तू मेरी,
पूजा करने का,
तू मेरी पूजा करने का।।
अलका कुमारी
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