परिंदे की उड़ान
लोग तो कितने डरपोक होते है।
ठोकर लगने से भी डरते है।
उनको क्या पता ठोकर खाए।
हुए लोग ही परिंदा बन,
आसमान में उड़ते है।
वो परिंदा जिसके लिए कोई,
मंजिल नामुमकिन नहीं।
वो परिंदा जिसकी उड़ान,
की कोई सीमा नहीं।
जिसका न कोई साथी,
सहारे की कोई जरूरत नहीं।
सहारे की कोई जरूरत नहीं।
अलका कुमारी
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